दिल्ली के सैकड़ों मकानों पर लगे "बिकाऊ है" के पोस्टर

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ग्राउंड रिपोर्ट : नहीं बजा सकते हनुमान चालीसा, घर बेचने/छोड़ने पर मजबूर, मुस्लिम देते हैं धमकी

"लाउडस्पीकर पर भजन या हनुमान चालीसा नहीं बजा सकते। आवाज अगर पड़ोस के गलियों तक पहुँच गई तो पास के कई मुस्लिम आकर धमकी दे जाते हैं कि बंद कर लो, यहाँ यह सब नहीं चलेगा। जबकि हर पहर लाउडस्पीकर की तेज आवाज में अज़ान सुननी पड़ती है।"

 

रवि अग्रहरि

Delhi 3 August, 2020

पलायन हिन्दू दिल्ली दंगा

"धर्म विशेष के भय के कारण मकान बिकाऊ

“समुदाय विशेष के भय से यह मकान बिकाऊ है। डर के कारण, यह मकान तत्काल बिकाऊ है।” हर तरफ थोड़े बहुत भाषा के अंतर के साथ बस एक ही बात- “मकान बिकाऊ है।” ऐसे एक दो नहीं बल्कि दिल्ली के हिन्दू विरोधी दंगों के आग में झुलसी और अब झूठे आरोपों में अपने ही परिवार जनों के लौट आने की आस लिए करीब 150-200 हिन्दुओं के घरों के बाहर या तो ऐसे ही पोस्टर लगे हैं और लोग अपने घरों में दुबके या घर के बाहर पोस्टर और दरवाजे पर ताला लगा के अपना सब कुछ छोड़ के चले गए हैं कि अगर ज़िन्दगी रही तो संपत्ति फिर बना लेंगे।

 

यह हालात किसी दूर-दराज के गाँव की नहीं बल्कि उत्तर-पूर्वी दिल्ली के मुस्लिम बहुल नॉर्थ घोंडा का सुभाष मोहल्ला, मधुबन मोहल्ला और मौजपुर के मोहनपुरी क्षेत्र में हिन्दुओं की तीन गलियों का है। जहाँ हिन्दुओं के घरों के बाहर एक लाइन से ऐसे पोस्टर देखने को मिलेंगे। वैसे उस इलाके में पलायन की खबरें भले पहले रिपोर्ट न हुई हों लेकिन वहीं के कई लोगों ने बताया कि जब इन इलाकों में गुर्जर भी नहीं टिक सके तो भला वे हर रोज जान जाने का भय लिए कैसे रहें? वो भी तब जब दिल्ली हिन्दू विरोधी दंगों की आग अभी भी वहाँ रह गए हिन्दुओं को झुलसा रही है।

 

मामला इतना सीधा भी नहीं है। चलिए ऑपइंडिया आपको ले चलता है उन इलाकों में, जहाँ बस नाम पता चल जाए तो हो सकता है कि किसी झूठे आरोप में फँसा दिया जाए। अगर आप प्रतिष्ठित हैं इलाके में तो चांस ज़्यादा है। ऐसा मैं नहीं कह रहा हूँ बल्कि ऐसे कई स्याह सच से हमें वहीं के स्थानीय लोगों ने रू-ब-रू कराया। इसलिए वीडियो पर समस्याएँ बहुतों ने बताई पर इस दरख़्वास्त के साथ कि नाम न रिकॉर्ड करें तो सही रहेगा!

 

मोहनपुरी गली नंबर 6 से 8: पलायन को विवश हिन्दू परिवार

 

सबसे पहले ऑपइंडिया वहीं से शुरू कर रहा है, जहाँ हम पहली सूचना के आधार पर पहुँचे। यह इलाका है- उत्तर-पूर्वी दिल्ली के बाबरपुर विधानसभा क्षेत्र में मौजपुर का मोहनपुरी मोहल्ला। जहाँ गली नंबर: 6-7-8 है, जिसमें ज़्यादातर रहने वाले परिवार हिन्दू हैं। और जिन गलियों का जिक्र यहाँ नहीं है, उनमें ज़्यादातर मुस्लिमों का सघन निवास है।

 

कहने का तात्पर्य यह है कि इस इलाके में हिन्दू घिरे हैं, एक तरह से मुस्लिम बहुल आबादी से। और यही वजह भी रही कि दिल्ली दंगों में चौतरफा नुकसान हिन्दुओं को झेलना पड़ा। वहाँ के लोगों ने मुझे उन गेटों को दिखाया, जहाँ से भारी संख्या में मुस्लिम दंगाई भीड़ हिन्दुओं के गलियों में प्रवेश करती है और 24-25 फरवरी 2020 को घटित दिल्ली दंगे, यहाँ के हालात और ख़राब कर देते हैं।

 

मैंने इन गलियों में जब दिल्ली दंगों में लूटे और जला दिए गए “पंडित जी रसोई” नामक ढाबे को देखा तो ठिठक गया। पूछने पर स्थानीय लोगों ने CCTV फुटेज का हवाला देते हुए बताया कि दिल्ली दंगों के दौरान पड़ोस के रुई के दुकान वाले ने ही दंगाई भीड़ को उकसा कर इसमें आग लगाने को कहा। और वहाँ के लोगों ने यह भी बताया कि यही भीड़ रसोई के सामने के एक बड़ी सी गंगा मेडिकल स्टोर को लूट कर आग के हवाले कर देती है।

 

गंगा मेडिकल स्टोर की जली हुई दरो-दीवार आज भी अपनी कहानी खुद ही बयाँ कर रही थी। इस मकान के गेट पर ही पहला पोस्टर दिखा- “यह मकान बिकाऊ है।” करीब 5 महीने पहले लूटी और जलाई गई दूकान अभी दोबारा नहीं खुल सकी है। बल्कि अब नौबत डर और दहशत से मकान बेचकर कहीं और आशियाना और सुकून ढूँढने की आ गई है। वैसे मुख्य सड़क पर ही चुन कर कई हिन्दुओं की दुकानें, मकान और गाड़ियाँ जला दी गई थीं।

 

यहाँ से सिलसिला शुरू हुआ तो दोनों तरफ लगभग हर हिन्दू घर के बाहर मकान बेचने के पोस्टर चिपके पड़े हैं। और जिस गेट पर खड़े हो जाइए वही अपनी पीड़ा सुनाने को तैयार ताकि हम उनकी बात देश के उन लोगों तक पहुँचा सकें, जो इन हिन्दू परिवारों को यह एहसास दिलाएँ कि वो अकेले नहीं हैं।

 

तीनों गलियों में मैंने कई चक्कर लगाए। हर दरवाजे पर चस्पा मकान बेचने के पोस्टर पढ़ता रहा। और और जिस डर का सभी जिक्र कर रहे थे, उस ‘सन्नाटे की चीख’ भी महसूस की। लगभग पचासों लोगों से मैंने बातें कीं।

 

उन सभी से सवाल किए कि क्यों डरे हैं वो इतने? क्यों अपना मकान बेच कर यहाँ से चले जाना चाहते हैं? कौन लोग हैं, जो दिल्ली दंगों के बीत जाने के लगभग 5 महीने बाद तक उन्हें डराते आ रहे हैं? दंगों के दौरान इस मोहल्ले को कितना नुकसान हुआ? उन्हें और उनके परिवार को आखिर क्या-क्या समस्याएँ हैं? और उसके समाधान के लिए उन लोगों ने अब तक क्या किया?

 

अब आपको सीधे ले चलता हूँ मोहनपुरी के इन तीनों गलियों के इकलौते गली नंबर- 8 स्थित लक्ष्मी-नारायण मंदिर के बाहर खड़े कुछ लोगों के पास जिनके मकानों पर अपना घर बेच देने का पोस्टर और आँखों में डर है कि उन्हें कहीं कुछ हो न जाए। अपने लेवल पर इन सभी ने गलियों के हर प्रवेश द्वार पर गेट लगवा दिया है। कई तो दिन में भी बंद रहती हैं और रात में एक को छोड़कर सभी हिन्दुओं ने अपने पैसे से चौकीदार रख दिया है ताकि वह किसी खतरे के समय उन्हें सीटी बजाकर चौकन्ना कर दे।

 

लेकिन बात इतनी ही नहीं। लोगों को शिकायतें बहुत सारी हैं। वहाँ मंदिर तो है लेकिन वो उसमें लाउडस्पीकर पर भजन या हनुमान चालीसा नहीं बजा सकते। पूजा के समय आरती के स्वर भी मंदिर की चहारदीवारी में घुटकर रह जाती है। आवाज तेज हुई और पड़ोस के गलियों तक पहुँच गई तो पास के कई मुस्लिम आकर धमकी दे जाते हैं कि बंद कर लो, यहाँ यह सब नहीं चलेगा। यह आवाज हमारी कानों तक नहीं आने चाहिए।

 

जबकि वहाँ रहने वाले हिन्दुओं को हर पहर जब-जब अज़ान या कोई जलसा होता है, मस्जिद से आने वाली लाउडस्पीकर की तेज आवाज में अज़ान सुननी पड़ती है। चारो तरफ मस्जिद पर लाउडस्पीकर तो है ही, आस-पास के सभी ऊँचे मुस्लिम समुदाय के मकानों पर एक्सटेंशन वायर के जरिए लाउडस्पीकर लगा दिए गए हैं।

 

वहाँ रहने वाले हिन्दू परिवारों ने ही बताया कि अज़ान से उन्हें उतनी समस्या नहीं है। समस्या तो तब है, जब उनको अपने धार्मिक क्रियाकलापों और उत्सवों से भी वंचित करने की कोशिश हो रही है। दंगों के बाद से यह दबाव और बढ़ा है।

 

पड़ोस के मुहल्लों से कोई भी मुस्लिम इधर से गुजरते हुए तंज कसता हुआ निकल जाता है कि बना लो मकान, रहना तो उन्हें ही है। छोड़ के जाना होगा। तो कोई घर के बाहर पोस्टर देखकर यही पूछता हुआ निकल जाता है कि यह मकान तो वही ख़रीदेंगे।

 

स्थानीय लोगों ने ऑपइंडिया को यह भी बताया कि गलियों में लड़कियों-महिलाओं का खड़े रहना भी दुश्वार है। कब कोई समुदाय विशेष का झुण्ड तेजी से 4-5 की सवारी के साथ बाइक चलाता हुआ, फिकरे कसता हुआ निकल जाए, कुछ कहा नहीं जा सकता। कुछ बोल दिया तो झगड़े की नौबत! अब कौन लड़े उनसे? अपना काम-धंधा करें, पढ़े-लिखें या उनसे लड़ें? उनमें से ज़्यादातर को कोई काम तो है नहीं, कोई पंचर बनाता है, कोई अंडे, जूस या ऐसे ही कुछ बेचता हुआ नजर आता है।

 

कभी दरवाजे तक आकर भी पास के मुस्लिम मोहल्ले का कोई झूठे केस में फँसा देने की धमकी देता हुआ निकल जाता है। डर का डोज कम न हो, इसके लिए रोजों के समय इनके उत्पात और बढ़ जाते हैं। ईद के समय तो जान-बूझकर हिन्दू मोहल्लों में मुस्लिम हलाल करने वाले ऊँट जैसे जानवर आदि शोर-शराबे के साथ घुमाते हैं और हिन्दू सहम कर सब कुछ सहने को मजबूर।

 

मैंने पूछा कि क्या यहाँ के विधायक या पार्षद आपसे मिलने आए? तो लोगों ने जो बताया वो और भी चौकाने वाला और भेदभावपूर्ण नजर आया। लोगों ने कहा कि आप आदमी पार्टी के विधायक गोपाल राय पास के मोहल्ले नूर-ए-इलाही में तो आए, वहाँ खाना भी बँटवाया, मुस्लिम मोहल्लों में सरकारी पैसों से गेट आदि लगवाया लेकिन जब से जीते हैं तभी से, यहाँ तक कि दिल्ली दंगों के बाद भी इधर झाँकने तक नहीं आए।

 

स्थानीय लोगों का कहना है यहाँ के मुस्लिम जिन लोगों को जानते थे, उनमें से कई लोगों को दिल्ली दंगों में ही बहुत बाद में झूठे केस में फँसा चुके हैं। इनके कई परिवारों के कमाने वाले लोग दिल्ली दंगों के बाद कई मामलों में फँसाए जा चुके हैं।

 

साहिल के पिता परवेज की हत्या के मामले में खुद से पुलिस की मदद के लिए क्राइम ब्रांच गए 16 लोग सिर्फ मोबाइल लोकेशन के आधार पर गिरफ्तार कर जेल में डाल दिए गए हैं। न कोई चार्जशीट फाइल हो रही है और न उन्हें जमानत मिल रही है और यहाँ के मुस्लिम हर रोज धमकी देकर जाते हैं कि जैसे उन लोगों को फँसा कर जेल भिजवाया, तुम सब जाओगे, सबका नंबर आएगा।

 

यह डर आए दिन बढ़ती धमकियों के साथ बढ़ता जा रहा है। हालाँकि, अपनी सुरक्षा के लिए हिन्दुओं ने अपने पैसे से चंदा जमा कर गेट लगा लिया है और वहाँ के एक मुख्य गेट पर रखे चौकीदार को देने के लिए और भी चंदा इकट्ठे करते दिखे।

 

उन सभी लोगों के परिवार बेहद डरे हैं। कई घरों में तो एकलौते वही कमाने वाले थे, जो किसी न किसी आरोप में फँसा दिए गए हैं। ज़्यादातर उसमें से वही हैं, जिनकी (उनके अनुसार) मुस्लिम दंगाई भीड़ द्वारा दुकानें लूटी और जलाई गईं। और उल्टा वो सभी एक ऐसे मामले में अभी जेल में हैं, जिसमें उनके खिलाफ कोई सबूत नहीं है। बस एक FIR में चुनकर कई लोगों के नाम लिखा दिए गए। इनमें से कई उस समय दिल्ली में भी नहीं थे और इसका उनके पास प्रमाण भी है।

 

अब आगे बढ़ने से पहले यहीं संक्षेप में यह भी जान लीजिए कि दिल्ली दंगों के दौरान वह मामला क्या था, किस आधार पर और कौन से 16 लोग पिछले करीब 4 महीनों से जेल में बंद हैं।

 

साहिल के पिता परवेज 3 बार में 3 तरह से, 2 अलग जगहों पर मरे… और 16 हिन्दुओं के नाम FIR में

 

दिल्ली के हिन्दू-विरोधी दंगों में मोहनपुरी इलाके में 25 फरवरी 2020 को एक लाश मिलती है। लाश की पहचान परवेज आलम के रूप में होती है। ये घटना 25 फरवरी के शाम सात बजे की बताया जाता है।

 

जाफराबाद पुलिस थाने में दर्ज प्राथमिकी में परवेज की जेब से 13 जिंदा कारतूस (गोलियाँ), एक नोकिया फोन और चाभियों का एक गुच्छा बरामद होने की बात है। इसके बाद यह लिखा गया कि इस व्यक्ति को घोंडा चौक से बाबू राम चौक की तरफ जाने वाली सड़क से घायल अवस्था में अस्पताल में दाखिल कराया गया। जहाँ बाद में उन्हें बताया गया कि उनकी मौत हो गई है।

 

साहिल के बयानों के अनुसार ही उसके पिता परवेज की हत्या तीन बार में, तीन तरह से दो अलग जगहों पर होती है। और लगभग 1 महीने बाद दर्ज शिकायत में चुनकर कई आरोपितों के नाम बढ़ाए जाते हैं।

 

वैसे, साहिल ने 25 फरवरी के बाद 19 मार्च 2020 को एक आवेदन पत्र लिखा जो कि भजनपुरा पुलिस स्टेशन के SHO के नाम था। 3 अप्रैल 2020 को साहिल के बयान को पुलिस ने लिखा है। जबकि चश्मदीदों ने ऑपइंडिया को बताया (आरोपितों के परिजन विक्रान्त त्यागी, शशि मिश्रा, चंद्रप्रकाश माहेश्वरी, निशा, श्रीमती चावला) मोहनपुरी इलाके में जो भी होना था, वो सब 24 फरवरी को हो चुका था।

 

मुसलमानों की भीड़ ने ‘अल्लाहु अकबर’ के नारे लगाते हुए त्यागी परिवार के घर में पेट्रोल बम फेंके, मोटर सायकिल को आग लगा दी, और गेट को तोड़ने की कोशिश की। साथ ही मुख्य सड़क पर हिन्दुओं के दुकान, मकान और गाड़ियों को निशाना बनाया गया।

 

मुख्य सड़क पर इस FIR में नामित 16 आरोपितों में से कइयों के दुकान आदि थे, जिन्हें बुरी तरह से तोड़ा गया, आग लगाई गई। जबकि उनके परिवारों का कहना है कि इलाके के हिन्दू लोगों में डर इतना ज्यादा था कि घरों में दुबके ये लोग ईश्वर से अपने बचने की प्रार्थना कर रहे थे और लगातार पुलिस को कॉल कर रहे थे।

 

ख़ैर, यह सब उस समय तक खत्म हो चुका था। इसके बाद सीधे 8 अप्रैल 2020 को 16 आरोपितों को पुलिस ने नोटिस भेज कर द्वारका स्थित क्राइम ब्रांच में पूछताछ के लिए बुलाया। इसके बाद, फिर अगले दिन भी इन्हें बुलाया और, चूँकि इन्होंने कुछ अपराध किया नहीं था, तो ये पुलिस के साथ जाँच में सहयोग देने की इच्छा से अपनी गाड़ियों में वहाँ गए। परिजन बताते हैं कि वहाँ से रात को फोन आया कि सारे लोग गिरफ्तार हो गए हैं। तब से आज तक परिजनों को न तो मिलने दिया गया, न बातचीत हुई।

 

यह पूरी कहानी कि कब क्या हुआ और कैसे लोगों ने अपनी बात रखी और ऑपइंडिया को भी तमाम सबूतों के साथ बताया वह आप इस विस्तृत रिपोर्ट में पढ़ सकते हैं। फिलहाल इसी रिपोर्ट के हवाले से इतना बता दूँ कि साहिल ने दो बार बताया कि हत्या के समय वो अपने पिता के साथ नमाज पढ़ने जा रहा था।

 

साहिल ने इनमें से एक बयान में रिवॉल्वर के गायब होने की बात की है। पुलिस ने लाश की जेब से तेरह जिंदा कारतूस के होने की बात अपनी प्राथमिकी में दर्ज की है। अब साहिल को यह भी बताना चाहिए कि क्या मस्जिद में नमाज पढ़ने जाते हुए गोली और पिस्तौल रखना किस हिसाब से सही है? अब यह पूरा मामला जाँच का एक अलग विषय है। उस पर जाँच जरूर होनी चाहिए।

 

कौन हैं ये कथित रूप से गिरफ्तार हुए 16 लोग?

 

साहिल ने अपने 3 अप्रैल वाले बयान में कुल 16 लोगों पर आरोप लगाए हैं: सुशील, जयबीर, सुप्रीम, पवन, अतुल चौहान, वीरेन्द्र चौहान, सुरेश पंडित, अमित, नरेश त्यागी, उत्तम त्यागी, दीपांशु, राजपाल त्यागी, अखिल चौधरी, उत्तम मिश्रा, हरिओम मिश्रा, संदीप चावला। हत्या की वारदात 25 फरवरी को हुई, और इन सबको नोटिस 8 अप्रैल को मिले। उसके बाद इन्हें एक दिन द्वारका क्राइम ब्रांच में बुलाया गया और बाद में गिरफ्तारी हुई।

 

स्थानीय लोगों ने ही यह भी बताया कि जिन लोगों को इस झूठे आरोप में फँसाया गया है, उसमें से ज़्यादातर संघ और विश्व हिन्दू परिषद से जुड़े हैं। उनका यह भी कहना है कि साजिशन इसकी योजना हिन्दुओं को बदनाम करने के लिए दंगों से प्रभावित कैंप में मुस्लिमों द्वारा बनाई गई। अब सच क्या है, यह जाँच का विषय है।

 

नॉर्थ घोंडा का मधुबन मोहल्ला

 

इस मोहल्ले में जयप्रकाश माहेश्वरी और चौहान परिवार का मकान है। इनके घरों के बाहर भी मकान बिकाऊ है, के पोस्टर लगे हैं। जयप्रकाश माहेश्वरी ने ऑपइंडिया से अपने बेटे की उसी उपरोक्त मामले में गिरफ़्तारी का जिक्र करते हुए बताया कि उनके बेटे को झूठे आरोप में फँसा दिया गया है। उन्होंने बताया कि अब हर रोज अज्ञात लोगों द्वारा धमकियाँ मिल रही हैं।

 

उन्होंने कहा, “अननोन लोग आते हैं और कह कर जाते हैं कि अभी बेटा ही अंदर हुआ है। तुम भी छोड़ के जाओगे।” जयप्रकाश जी का कहना है, “बस मेरा निर्दोष बेटा बाहर आ जाए फिर यह इलाका छोड़कर कुछ भी करके कहीं जी-खा लेंगे। मुझे यहाँ नहीं रहना है अब।”

 

मधुबन मोहल्ले के ही अतुल और वीरेंद्र चौहान के घर के लोगों से भी ऑपइंडिया ने बात की तो उनका पूरा दर्द बाहर आ गया। परिवार में इकलौते वही लोग कमाने वाले थे। घर में बूढ़े बीमार पिता हैं, जिनके दवा के लिए भी अब पैसे नहीं बचे हैं।

 

घर में सिर्फ चार महिलाएँ- उन दोनों की पत्नियाँ, उनके बच्चे, बूढ़ी माँ और बीमार बिस्तर पर पड़े पिता हैं। साथ ही रक्षाबंधन पर उनकी बहन भी आई हैं, राखी बाँधने की उम्मीद लिए, जिसके पूरे होने की कोई सम्भावना नहीं नजर आ रही। रिश्तेदारों ने पैसा और मदद देने से मना कर दिया है। महिलाएँ हर रोज अपने परिजनों का इंतजार कर रही हैं। और चाहती हैं कि बस एक बार वो बाहर आ जाएँ तो वो मकान बेचकर चले जाएँगे।

 

मैं वहाँ खड़ा होकर बात ही कर रहा था तभी उस गली से एक तेज बाइक कमेंट करती हुई गुजर जाती है। मेरे पूछने पर कि क्या ऐसा अक्सर होता है, जवाब मिलता है कि आस-पास के मुस्लिम दबाव बना रहे हैं कि हम अपना मकान छोड़कर या बहुत कम दाम पर बेचकर यहाँ से चले जाएँ। उनका कहना है, “हिन्दू भय के मारे खरीदेगा नहीं और मुसलमान डरा के फ्री में कब्ज़ा कर लेंगे।”

 

काफी देर वहाँ रहने के बाद यह मैंने खुद भी महसूस किया कि आस-पास के छतों और गलियों में खड़े मुस्लिम परिवार का कोई भी व्यक्ति उन्हें आश्वासन देने या उनका डर दूर करने नहीं आया। पास-पड़ोस का तनाव वहाँ साफ़ दिन में ही नजर आ रहा था। जिसके आधार पर वहाँ रात के क्या हालात होंगे, इसका सहज अनुमान लगाया जा सकता है।

 

नॉर्थ घोंडा सुभाष मोहल्ला

 

उत्तरी घोंडा के सुभाष मोहल्ले का गली नंबर-तीन। यहाँ भी शुरुआत में ही करीब 5-6 घर हैं, जिन पर- “भय से मकान बिकाऊ है” का पोस्टर चस्पा है। इसी गली में बहुत सारे मुस्लिम भी रहते हैं। जिन्होंने दबाव बनाकर गली के दोनों छोरों पर लोहे का गेट भी नहीं लगाने दिया।

 

घोंडा में यहीं के पहले मकान त्यागी के घर की बाइक फूँकी गई थी और घर में आग लगाने की कोशिश हुई लेकिन दंगाइयों के अंदर न पहुँच पाने और अंदर से त्यागी परिवार द्वारा पानी फेंककर पेट्रोल बम से लगे आग बुझा देने के कारण बड़ा हादसा टल गया था। लेकिन दंगों के कुछ अवशेष अभी भी शेष हैं। और साथ ही CCTV में मौजूद उस दिन क्या हुआ था, उसके प्रमाण।

 

इस परिवार के भी दो लोग साहिल के पिता परवेज वाले FIR में नाम होने से जेल में हैं। इस परिवार ने उनके छूट के आने और अपने बच्चों का भविष्य सुरक्षित करने के लिए यहाँ का मकान बेचकर चले जाने का निर्णय कर लिया है।

 

इसी गली के नुक्कड़ पर एक इलेक्ट्रॉनिक की दुकान भी लूटी और जला दी गई थी। उस मकान पर भी “मकान बिकाऊ है” का पोस्टर लगा है। और पूरी तरह तहस-नहस होने के बाद अब भी दुकान बंद। अब यह लोग यहाँ हर रोज दहशत और डर के साए में नहीं रहना चाहते बल्कि सब कुछ बेचकर कहीं और चले जाना चाहते हैं। जहाँ वह सुरक्षित रह सकें।

 

यहाँ के लगभग सभी मुस्लिमों के डर से पलायन करते हिन्दू परिवारों से हाल ही में सांसद मनोज तिवारी भी मिलने गए थे। इलाके में पहुँचकर उन्होंने खुद पीड़ितों का दर्द जाना और मौजूदा हालात का मुआयना कर इलाके के सभी हिन्दू परिवारों को सुरक्षा का आश्वासन देते हुए गली के बाहर एक पिकेट लगाने की बात कही। साथ ही झूठे आरोप में गिरफ्तार 16 लोगों के मामले की जाँच का भी आश्वासन दिया। ऐसा वहाँ के लोगों ने ऑपइंडिया को बताया।

 

मुस्लिम समुदाय के डर और दहशत से हिन्दुओं के पलायन की कहानी को शब्दों में समेटना आसान नहीं है। लोगों की आँखों में जो भय दिखा, उसे कहना और दूर करना भी आसान नहीं। बीजेपी सांसद के वहाँ आने के बाद भी माहौल अभी बदला नहीं है।

 

इलाके में भय और दहशत बनी हुई है। हमें यह भी नहीं पता कि उत्तर-पूर्वी दिल्ली में पलायन की सोच रहे इन हिन्दू परिवारों को प्रशासन रोक पाएगा या नहीं। उनका डर कम कर पाएगा या नहीं या फिर वहाँ के आम आदमी पार्टी के विधायक गोपाल राय और निगम पार्षद मामले की अनदेखी करते हुए देश की राजधानी दिल्ली में एक और मेवात की नींव तो नहीं रख देंगे!

 

जो कुछ भी हो रहा है और हिन्दू परिवारों को जो कुछ भी झेलना पड़ रहा है, उसे देखते और महसूस करते हुए एक सवाल जो वहीं के किसी आदमी ने पूछा कि आखिर गंगा-जमुनी तहजीब की जिम्मेदारी क्या हमेशा हिन्दुओं की ही रहेगी? हम कब तक भय के साए में रहेंगे? क्या कभी यह मंजर बदलेगा भी? मेरे पास तो कोई जवाब नहीं था, सोचिए शायद आपके पास हो!

 

"...रहना तो हमें ही है। छोड़ कर जाना होगा। 'मकान बिकाऊ है' वाला पोस्टर देख कर वे कहते हुए निकल जाते हैं कि यह मकान तो वही खरीदेंगे।"

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