मथुरा : श्रीकृष्ण जन्मभूमि की ज़मीन संबंधी मुकदमा खारिज, कोर्ट ने चर्चित वाद को एक झटके में क्यों कर दिया रद्द ?

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योगेश खत्री

टीटीआई न्यूज़

मथुरा 30 सितंबर 2020

मथुरा की सीनियर सिविल जज सीनियर डिवीजन कोर्ट में शाही ईदगाह मस्जिद के कब्जे वाली 13.37 एकड़ जमीन 'श्रीकृष्ण विराजमान को सौंपने के लिए दायर किये गए वाद को आज इंचार्ज सिविल जज सीनियर डिवीजन/अपर जिला जज छाया शर्मा ने खारिज कर दिया। विद्वान महिला न्यायाधीश ने इस वाद को विधि सम्मत नहीं माना और कानूनी रूप से पोषणीय नहीं पाया। इस वाद और बावरी केस के फैसले को लेकर जिला न्यायालय में आज खासी हलचल रही और सुरक्षा के इंतजाम कड़े किए गए। 

श्री कृष्ण विराजमान, श्रीकृष्ण जन्मभूमि और उनके आधा दर्जन भक्तों की ओर से दाखिल याचिका को खारिज करते हुए दिए अपने फैसले में न्यायाधीश शर्मा ने कहा कि प्रार्थीगण प्रश्नगत डिक्री के न तो पक्षकार हैं और न ही न्यासी। भगवान श्रीकृष्ण हिन्दू धर्म के पूज्य देवता हैं, वह भगवान विष्णु के अवतार के रूप में जाने जाते हैं और पूरी दुनिया में उनके असंख्य भक्त एवं श्रद्धालु हैं और ऐसी स्थिति में यदि इसी प्रकार प्रत्येक भक्त और श्रद्धालु को वाद दायर करने की अनुमति दे दी गई तो न्यायिक एवं सामाजिक व्यवस्था चरमरा जाएगी।

अदालत ने कहा कि ऐसे में, केवल भक्त होने के आधार पर प्रार्थीगण को वाद प्रस्तुत करने की अनुमति देना न्यायोचित और युक्तियुक्त नहीं होगा, और भक्तजन द्वारा वाद प्रस्तुत किया जाना विधि की दृष्टि से भी अनुमन्य नहीं है।

वादी पक्ष की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता हरीशंकर जैन और अधिवक्ता विष्‍णु शंकर जैन ने बताया कि उन्होंने बाहरी व्यक्तियों द्वारा यहां इस मसले पर याचिका दाखिल किए जाने से संबंधित सवाल पर अदालत को भारतीय दण्ड संहिता की धारा 16 एवं 20 का हवाला दिया और कहा कि यह हर भारतीय नागरिक का अधिकार है कि वह कहीं भी किसी भी जनपद में अपनी फरियाद कर सकता है।

मामले की सुनवाई के लिये अदालत में राम मंदिर से संबंधित मामले में न्यायालय के फैसले के पैरा 116 का हवाला दिया गया और कहा गया कि मंदिर निर्माण की संकल्पना अमिट और अदालत के अधिकार क्षेत्र से बाहर है। महामना मदन मोहन मालवीय आदि द्वारा ली गई यह संकल्पना मंदिर निर्माण के पश्चात भी कायम है।

सुनवाई के दौरान वादी पक्ष के वकीलों ने श्री कृष्ण जन्मस्थान और कटरा केशवदेव परिसर में भगवान कृष्ण का भव्य मंदिर बनाए जाने से संबंधित इतिहास का सिलसिलेवार ब्यौरा दिया और कहा कि श्रीकृष्ण जन्मस्थान सेवा संस्थान को शाही ईदगाह प्रबंधन समिति से किसी भी प्रकार का कोई हक ही नहीं था। इसलिए उसके द्वारा किया गया कोई भी समझौता अवैध है। जिसके साथ शाही ईदगाह निर्माण के लिए कब्जाई गई भूमि पर उसका कब्जा अनधिकृत है।

इन अधिवक्ताओं ने कृष्ण सखी के रूप में याचिकाकर्ता रंजना अग्निहोत्री की मांग का समर्थन करते हुए संपूर्ण भूमि का कब्जा श्रीकृष्ण विराजमान को सौंपने का अनुरोध किया था।

उक्त डिक्री वर्ष 1968 में श्रीकृष्ण जन्मस्थान ट्रस्ट और शाही ईदगाह प्रबंधन समिति के बीच हुए समझौते के संबंध में अदालत द्वारा 1973 में दी गयी थी।

बताया गया है कि मथुरा की सिविल जज सीनियर डिवीजन कोर्ट में 57 पेज का दावा दायर करने से पूर्व वादी पक्ष ने श्रीकृष्ण जन्मस्थान और ईदगाह का अतीत से लेकर वर्तमान तक का अध्ययन किया था। इस पक्ष के लोगों का मानना है कि सुप्रीम कोर्ट ने श्रीराम मंदिर के पक्ष में दिए फैसले के पैरा 116 में संकल्प अमर रहने का स्पष्ट उल्लेख किया है, यह वाक्य इस मामले में भी नज़ीर बन सकता है। श्रीकृष्ण विराजमान व लखनऊ की महिला अधिवक्ता रंजना अग्निहोत्री, अन्य पक्षकारों की ओर से सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता हरीशंकर जैन व उनके पुत्र विष्णुशंकर जैन ने यह वाद दायर किया था, सीनियर सिविल लॉयर गोपाल खंडेलवाल के अनुसार जिसे मथुरा कोर्ट ने यह कहते हुए खारिज कर दिया है कि यह विधि सम्मत और कानूनी रूप से पोषणीय नहीं है। इस पर वादी पक्ष ने कहा कि हम हाईकोर्ट जाएंगे।

वहीं शाही ईदगाह के अध्यक्ष प्रो. जेड हसन ने कहा कि कृष्ण की नगरी का प्रेम सौहार्द बना हुआ है, उसे बनाए रखा जाना चाहिए। प्रो.जेड हसन ने यह भी कहा कि सन् 1968 में एक समझौता हुआ था, जिसमें श्री कृष्ण जन्मभूमि को काफी जमीन दे दी गयी थी, जिस पर विशाल मंदिर बना हुआ है और मस्जिद मुस्लिम भाईयों के लिए है, जिस पर वे ईद की नमाज आज भी पढ़ते हैं और नीचे आने पर हिन्दू भाई गले मिलकर उनको ईद की मुबारकबाद देते हैं। एक तरफ मंदिर और एक तरफ मस्जिद इस बात की मिसाल है कि हम सब एक हैं और हम सब हिंदुस्तानी हैं। प्रो.जेड हसन ने उन हिन्दू साधु संतों से भी बाल कृष्ण भट्ट के लेख 'कहा विष्णु घट गयो जो भिरगू मारी लात' के माध्यम से अपील की कि संतों को सहिष्णुता का परिचय देना चाहिए।

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