वृंदावन में इक राधा प्रस्तुति- राजेश मिश्रा वरिष्ठ पत्रकार

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वृंदावन में इक राधा

प्रस्तुति- राजेश मिश्रा वरिष्ठ पत्रकार

सृष्टि के रचियता, पालनहार ठाकुर बांके बिहारी जी के दर की ओर बढ़ते पग अचानक रुक गए। इस पावन धरा पर इस राह किनारे बैठी थी  बुजुर्ग। एक हाथ माथे से पोंछता पसीना और दूसरा कुछ मिलने की अभिलाषा में स्टेच्यू बना था। हथेली की त्वचा ऐसी कि अब किस्मत की लकीरें भी नजर नहीं आ रही थीं। जिन कलाइयों पर कभी रंग बिरंगी चूड़ियां खनकतीं थीं, वहां पर अब रेंग रहे रक्त का संकेत मात्र नसें स्पष्ट नजर आ रही थीं। बयार बगैर भीषण उमस थी मगर इस राह पर आस्था बरस रही थी। 

महिला स्वभाव के वशीभूत पत्नी एक दुकान पर ठाकुरजी के लिए पोशाक और श्रृंगार सामग्री आदि खरीदने लगीं और मैं जा बैठा माई के पास। कुछ आर्थिक सहयोग दिया तो माई गदगद हो गई, सड़क पर बैठा तो बोली- अरे बेटा, हिहन तो कीचड़ है, मत बैठो! मैंने कहा- अम्मा, तुमने कभी सपने में भी सोचा था कि यहां और ऐसे बैठोगी। समय का पता नहीं। और कितना भी बुरा समय आ जाए, ये सड़क तो मिल ही जाएगी बैठने को। वैसे भी, ये भगवान की धरा है। यहां सबको जमीन में ही मिल जाना है। मैं कहता जा रहा था और माई मेरी पीठ पर हाथ फेर फेर आशीष दे रही थी। यकीन मानिए, मैं इस आत्मीयता से भावविभोर होता जा रहा था। ठाकुरजी की कृपा बरस रही थी। मुझे आभास भी न हुआ कि पत्नी के कहने पर भांजी ने कब अपने कैमरे में मुझे कैद कर लिया। 

इधर, बुजुर्ग महिला मायके में मिले दुलार से लेकर ससुराल में मिली उपेक्षा और जीवन संघर्ष की कहानी सुनाए जा रही थी। अम्मा, तुमाओ का नाम है? राधा। जे नाम अब रख लओ या??। नांय बेटा, अम्मा बाप ने ही रखो थो। ब्याओ हुय गयो। दुय लड़का और एक बिटिया भई। फिरु आफत आयन लगी। आदमी खत्म हुय गयो। बड़ो लड़का मक्कार निकर गयो। छोटो पागल जैसो हतो। बिटिया की शादी जैसे तैसे कद्दई। जब किल_कांए ज्यादा होन लगी तो हिहन आए गए। 20 साल पहले। 

अब सकून तो है बेटा

यहां कहां रहती हो, क्या खाती हो, कोई दिक्कत तो नहीं???(एक बात और, जब मैं सड़क पर पालती मार कर अम्मा से बात कर रहा था तो आसपास के दुकानदार कौतूहल से हमें देखकर हंस रहे थे)। अम्मा ने बताया कि वो यहां एक भवन में रहती हैं। पहले वहीं पर खाना मिल जाता था। अब सड़क पर जो कोई दे जाता है, उसी से पेट भर लेती हैं। फिर, बोलीं कि हिहन कोई टेंशन नहीं है। हां, उन्होंने टेंशन शब्द ही बोला। उनके चेहरे पर वास्तव में टेंशन नजर भी नहीं आ रहा था। मैंने कही, तुमने तो खूब अच्छे अच्छे सपने देखे होंगे। अरे बेटा, सब टूट गए। सड़क पर बैठन पड़ये, कभयूं सपनेयू नाय सोची। अम्मा, नाम तो तुमाओ राधा है। कृष्ण जी की राधा। अम्मा बोलीं, हां अब तो किशन की राधा बन गई। 

यही तो मां होती है

बड़े बेटे ने आसरा नहीं दिया। छोटा किसी काम का नहीं। कुछ जमीन भी है। फिर भी, कोरोना काल में जब भवन से जाना पड़ा तो अम्मा अपने गांव ही गई, बेटे के पास। मगर! मगर!! मगर!!! ज्यादा दिन नहीं रुक पाई। बिटिया जरूर ख्याल रखती है। जब भी मन करता है, बिटिया के पास चली जाती हैं।

स्याह सच

अम्मा का पूरा परिचय नहीं खोला। जहां वो रहती हैं उस भवन का नाम भी नहीं खोल रहा हूं। क्योंकि अम्मा ने जो बताया वो स्याह सच था। अकेले उनके लिए नहीं, वृंदावन में रहने वाली इन जैसी तमाम अम्माओं के लिए। इन अम्माओ को आश्रय देने का ढोंग है। इनसे हर माह रुपए वसूले जाते हैं। ये अम्माएं सड़क पर यूं ही नहीं बैठती हैं। इन्हें महिनेदारी का इंतजाम भी तो करना होता है। इन जैसी अन्य अम्मा ने बताया कि उन्हें भोजन मिल जाए, वस्त्र मिलते रहें तो सड़क पर क्यों बैठें। हम आए तो भगवान का भजन करने, सब कुछ छोड़कर। मगर, फंस गए दुनियादारी में। 

जाते-जाते अम्मा ने हमारी पीठ पर फिर हाथ फेरा और कहा__ लला आत रहयो। मुझे लगा कि ठाकुर जी ने आदेश दिया कि वृंदावन आते रहना, प्रभु के गुन गाते रहना।  ठाकुर का ध्यान किया और मैं चल पड़ा जीवन के दायित्व पूरे करने को सांसारिक मार्ग पर। 

 राधे राधे

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